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Saturday, July 18, 2020

मशरुम में कई औषधीय गुण, रोग प्रतिरोधक क्षमता में होती है वृद्धि और याददाश्त रहता है बरकरार

रायपुर। कोरोना वायरस और अन्य बीमारियों से लड़ने के लिए शरीर में रोग प्रतिरोध क्षमता का होना जरुरी होता है. ऐसे में प्रकृति में मौजूद जैव विविधता पर्यावरण के साथ ही शरीर के लिए विभिन्न पोषक तत्व प्रदान करती है. बरसात के मौसम में गरज और बारिश में उगने वाला मशरूम दीमक की बामियों, पैरा, साल के पेड़ों और बांसों की ढेर में निकलता है. जंगलों और खेत खलिहानों में प्राकृतिक और कृत्रिम रुप से उत्पादन किए जाने वाले औषधीय गुणों व पोषक तत्व से भरपूर मशरूम यानी फूटू सब्जी का स्वाद बहुत ही लजीज होता है।
छत्तीसगढ़ में यह फुटू (पुटू) नाम से जाना जाता है जिसको आयुर्वेद में धरती का फूल कहा जाता है. मशरूम में कई ऐसे जरूरी पोषक तत्व मौजूद होते हैं जिनकी शरीर को बहुत आवश्यकता होती है. सूर्य की धूप के बाद पोषण आहार के रुप में विटामिन-डी तथा फाइबर यानी रेशे का यह एक अच्छा स्रोत है. कई बीमारियों में मशरूम का इस्तेमाल औषधि के तौर पर किया जाता है. मशरुम में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व जैसे खनिज एवं विटामिन पाया जाता है जो शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत करता है और रोगों से लड़ने की क्षमता में वृद्वि होती है. मशरूम में एक खास पोषक तत्व पाया जाता है जो मांसपेशियों की सक्रियता और याददाश्त बरकरार रखने में बेहद फायदेमंद रहता है.

विटामिन और मिनरल्स है भरपूर

प्राकृतिक तौर पर जंगलों में मिलने वाली यह सब्जी (फंगस) मशरुम में गुड फैट, स्टार्च, शुगर फ्री, विटामिन और खनिज तत्व के साथ प्रोटीन पाया जाता है. इसमें कैलोरीज ज्यादा नहीं होतीं. नॉनवेज पसंद नहीं करने वालों के लिए पनीर की तरह प्रोटीनयुक्त शुद्व शाकाहारी है. महंगे प्राणीज पदार्थ के स्थान पर मशरुम का उपयोग लाभकारी होगा, क्योंकि इसमें विटामिंन और मिनरल्स पाये जाते हैं जो 100 ग्राम मशरुम में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहता है. विटामिनदृबी6, सी, डी, आयरन, काबोहाइड्रेट, फाइबर, प्रोटीन, पोटेशियम, मैग्निशियम मशरुम में मिलते हैं.
पोषण व औषधिय गुणों से भरपूर है मशरुम
डिग्री गर्ल्स कॉलेज की फूड एवं न्यूट्रेशन विभाग की प्रोफेसर डॉ. अभ्या आर. जोगलेकर बताती हैं सावन-भादों के मौसम में मशरुम प्राकृतिक रुप से जंगलों व खेतों में मिलती है. मशरुम की पौष्टिकता का रोग निवारण में प्रभाव देते हैं जैसे- बीपी, शुगर, कब्ज, हृदय रोग, मोटापा, कैंसर, एड्स, हड्डी रोग, कुपोषित बच्चे, कमजोर व्यक्तियों, एनिमिक व गर्भवती महिलाएं के लिए मशरूम में मौजूद तत्व रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं. इससे सर्दी-जुकाम जैसी बीमारियां जल्दी-जल्दी नहीं होती. मशरूम में मौजद सेलेनियम इम्यूनिटी सिस्टम के रिस्पॉन्स को बेहतर करता है. मशरूम विटामिन डी का भी एक बहुत अच्छा माध्यम है. यह विटामिन हड्डियों की मजबूती के लिए बहुत जरूरी होता है. इसमें बहुत कम मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं, जिससे वह वजन और ब्लड शुगर लेवल नहीं बढ़ाता. मशरूम में एंटी-ऑक्सीडेंट भूरपूर होते हैं. इसके अलावा मशरूम को बालों और त्वचा के लिए भी काफी फायदेमंद माना जाता है. वहीं कुछ स्टडीज में मशरूम के सेवन से कैंसर होने की आशंका कम होने की बात तक कही गई है।

70 फीसदी महिलाओं में हड्डी से संबंधित रोग

शासकीय आयुर्वेदिक कॉलेज पंचकर्म विभाग के एचओडी डॉ. रंजीप कुमार दास का कहना है अस्पताल की ओपीडी में आने वाली 40 वर्ष की उम्र पार कर चुके महिलाओं में हड्डी, कमर दर्द और कैलैशियम की कमी की समस्या प्रमुख रुप से पायी जाती है. इस तरह की बीमारियों की शिकायत लेकर आने वाली 70 फीसदी महिलाओं में अर्थराइटिस और ऑस्टियो-पोरोसिस की समस्याएं होती है. इसके लिए मशरुम में मिलने वाला पोषक तत्व और विटामिन-डी हडडी से संबंधित रोगों से लड़ने के लिए कारगर होता है.

प्राकृतिक मशरुम के उत्पादन के लिए हो रहा रिसर्च

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्लांट पैथोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. सीएस शुक्ला ने बताया मशरुम की अलग-अलग प्रजातियों का बीज तैयार कर कृत्रिम रुप से व्यावसायिक उत्पादन के लिए अखिल भारतीय मशरुम अनुसंधान परियोजना के तहत रिसर्च कार्य चल रहा है. डॉ. शुक्ला ने बताया छत्तीसगढ की जलवायु मशरुम के लिए अनुकूल होने की वजह से यहां 30 से 35 प्रजातियां खाने योग्य है. कुछ औषधीय मशरुम पर भी कृषि विवि में रिसर्च चल रहा है.
प्राकृतिक रुप से कनकी फूटू, भिंभोरा फुटू, बोडा, पेहरी एवं अन्य प्रकार के मशरुम मिलते हैं. वहीं कृत्रिम रुप से आयस्टर, पैरा फुटू, बटन, सफेद दुधिया मशरुम की खेती की जा रही है. डॉ. शुक्ला ने बताया, दुनियाभर में मशरुम की 42,000 प्रजातियां हैं जिसमें से 800 प्रजातियों की पहचान भारत में कर ली गई है. सीड तैयार कर मशरुम की कृत्रिम खेती घर के अंदर सरलता से वर्षभर की जा सकती है. प्राकृतिक मशरुम को सब्जी बनाने से पहले घर के बुजुर्गों से खाद्य मशरुम की पहचान कराने के बाद ही खाना चाहिए.

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