मनोज पाण्डेय
मैनपुर/ पढ़ाई तुंहर द्वार का पालन किस हद तक सफल है ,इसका सही मायने में कितना उपयोग छात्र छात्रायें कर रहे हैं जब हमने इस विषय पर चर्चा की तब अधिकतर लोगों ने जवाब में कहा कि इस वर्ष जिन छात्र छात्राओं ने स्कूल से काफ़ी दूर जँहा नेटवर्क भी उनके लिये दुर्लभ है ।आए दिन यह खबर की जोअसाइनमेंट पुरा नही करते उसकी जबाबदारी छात्र _छात्रायें खुद ही रहेंगे। छात्र छात्राओं में चिंता व्याप्त है । कि कंही हमारे इस वर्ष की पढ़ाई व्यर्थ न हो जाये अपनी समस्या पत्रकारों के माध्यम से सरकार तक रखना चाहते हैं कि जंहा हर विभाग खुल चुका है कोरोना से भय कम हो चुका है केवल शिक्षा का द्वार क्यों बंद हैं ? या सरकार विद्यार्थियों को शिक्षा और संस्कृति से कोषों दूर रखना चाहती है,किसी अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र की ओर ध्यान आकर्षित करती है ।
विगत माह मार्च से अब तक स्कूलों का बंद होना भारत को शिक्षा और सांस्कृतिक गतिविधियों से दूर करने की कोशिश को दर्शाता है ।
सरकार को चाहिए कि वो छात्र छात्राओ को उनके अधिकारों से वंचित न कर दूरस्थ क्षेत्रों के कि विद्यार्थियों के लिए सूचनाएं प्रेषित करने हेतू कोई सरलतम मार्ग अपनाये ताकि किसी विद्यार्थी का वर्ष खराब न हो।एवं इस प्रकार की आदेशों से विद्यार्थियों को न डराएं।