मनोजपाण्डेय
मैनपुर। विकासखण्ड मैनपुर के कई रहस्यमयी स्थानों में से एक चौकसील का देवमेला गढियामाता के दरबार ऊंचे पहाड़ों में स्थित यह दशहरी देवमेला जिसे शरद पूर्णिमा को आयोजित किया जाता है। इस मेले में प्रदेश के विभिन्न स्थानों से आगन्तुक एवं देवी देवताओं की टोलियां अपने डोली डांगों के साथ आते हैं तथा पूजन अर्चन के बाद सर्वकल्याण की कामना भी करते हैं। चौकसील जिसका शाब्दिक अर्थ है पत्थर की चौकी।
यह विशाल पत्थर 3 किलोमिटर का व्यास लिए हुवे घने जंगलों के बीच स्थित है। मैनपुर से लगभग 40 किलोमीटर दूर उदंती अभ्यारण के भीतर बम्हनिझोला से कच्चे मार्ग से होते हुए दुर्गम बीहड़ों में स्थित है। जहां भगवान शिव का लिंग स्थापित है । जितनी सुंदर प्रकृति की रचना है उतना ही दुर्गम मार्ग है। जिस कारण पर्यटकों का यंहा तक पहुंचना कठिन है, प्राकृति की गोद में बसा रतनांचल केवल रत्नों से ही नहीं बल्कि आकर्षक वाटरफॉल एवं रहस्यमई जगहों के लिए भी प्रसिद्ध है।
इस देवस्थान के बारे में हमने पड़ताल की तो क्षेत्र के आयोजन समिति के संरक्षक टीकम सिंह नागवंशी, गणेश राम पूर्व सरपंच, विजयसिंग नाग आदि ने बताया कि यह पर्व दशहरे के तीन दिनों के बाद चौकसील में आयोजित होता है जो कि शरद पूर्णिमा की बरसती अमृत वर्षा में खुले आसमान के नीचे विशाल पत्थर में पूरे 52 गढ़ के 12 पाली के क्षेत्रों से देवो की डोलियां तथा डांग आते हैं । उनके यंहा पूजन अर्चन के कार्य तथा शौर्य प्रदर्शन भी होता है। सब एक साथ मिलकर सर्व लोक कल्याण की कामना करते हैं।
इन सब दृश्यों से आदिवासी परम्पराएं उनके रहन-सहन आदि का परिचय होता है। इस वर्ष कोरोना के चलते कुछ संख्या में कमी जरूर आयी है। और इस वैश्विक महामारी से निजात पाने पूजा प्रार्थनाएं भी की गई ।