महासमुंद / -सरायपाली जिला महासमुंद वन मंडलाधिकारी पंकज राजपूत के निर्देशन में सरायपाली में पदस्थ वन परिक्षेत्र अधिकारी प्रत्युष ताण्डे के नेतृत्व में सरायपाली वन परिक्षेत्र के कर्मचारियों की टीम गठित कर सुविज्ञ सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार आज दिनांक 11.01.2024 को ग्राम सागरपाली के प्रवीण अग्रवाल पिता बजरंग अग्रवाल एवं सलाउद्दीन पिता अलाउद्दीन ग्राम सागरपाली के बजरंग हार्डवेयर बजरंग कॉम्पलेक्स गोदाम के अंदर जांच करने पर बहुतायत मात्रा में खैर प्रजाति की लकड़ी 430 नग = 9.126 घ.मी. एवं एक नग महिन्द्रा पिकअप वाहन कमांक सी.जी.-11-ए.बी. -0991, खैर लठ्ठा मय जप्त की गई.
जिसका पी.ओ.आर. नं. 14381/03 एवं 14381/04 दिनांक 11.01.2024 जारी की गई है। जप्त वनोपज की कीमत 1.35 लाख है. दोनों आरोपियों से पूछताछ कर भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 72 (1) (ग) या म.प्र. वनोपज (व्यापार विनिमयन) अधिनियम 1969 की धारा 15 (1) के अंतर्गत कार्यवाही की जा गई है। प्रकरण की विवेचना जारी है। उपरोक्त कार्यवाही में सरायपाली परिक्षेत्र के स.प.अ. सिंघोडा संतोष कुमार पैकरा, स.प.अ. सरायपाली, योगेश्वर निषाद, स.प.अ. बलौदा रविलाल निर्मलकर,स.प.अ.पालीडीह योगेश्वर कर एवं सरायपाली वन परिक्षेत्र के समस्त वनरक्षक और सुरक्षा श्रमिकों का विशेष योगदान रहा ।
खैर लकड़ी की विशेषता
देशभर में खैर का जंगल तेजी से सिमट रहा है और वन विभाग ने इसे दुर्लभ वृक्ष की श्रेणी में रखा है। राष्ट्रीय वन नीति 1988 में पेड़ों की प्रजातियों को संतुलित रूप से इस्तेमाल में लाने की बात कही गई है जिससे वे खत्म न हों।अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने वर्ष 2004 में विश्व में तकरीबन 552 पेड़ों की प्रजातियों को खतरे में माना गया जिसमें 45 प्रतिशत पेड़ भारत से थे। इन्हीं में खैर का नाम भी शामिल है। इस पेड़ का इस्तेमाल औषधि बनाने से लेकर पान और पान मसाला में इस्तेमाल होने वाले कत्था, चमड़ा उद्योग में इसे चमकाने के लिए किया जाता है। प्रोटीन की अधिकता के कारण ऊंट और बकरी के चारे के लिए इसकी पत्तियों की काफी मांग है। चारकोल बनाने में भी इस लकड़ी का उपयोग होता है। आयुर्वेद में इसका इस्तेमाल डायरिया, पाइल्स जैसे रोग ठीक करने में होता है। मांग अधिक होने की वजह से खैर के पेड़ों को अवैध रूप से जंगल से काटा जाता है.