इस अवसर पर सारंगढ जिलाध्यक्ष डॉ हलधर पटेल राज अध्यक्ष त्रिनाथ पटेल जी, उपाध्यक्ष महेतर गौटिया पटेल जी, संरक्षक श्री रोहित पटेल जी, श्री रेशम लाल जी, जिला कर्मचारी प्रकोष्ठ अध्यक्ष श्री विष्णु पटेल जी, जिला कोषाध्यक्ष कार्तिकेश्वर पटेल, जिला कार्यकारिणी सदस्य & संदेशवाहक दौलत पटेल जी, जिला सचिव एवम सोसायटी अध्यक्ष कौशल पटेल, सदस्य सियान घसिया, सदस्य सियान धुमरा, सदस्य सियान मोतीलाल एवम अन्य सदस्यगण भी शामिल हुए
25 जनवरी को शाकम्भरी जयंती, जानिए महत्व, पूजाविधि और कथा
हिंदू पंचांग के अनुसार पौष मास की पूर्णिमा को शाकम्भरी जयंती मनाई जाती है, इसलिए इसे शाकम्भरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस साल शाकम्भरी पूर्णिमा 25 जनवरी को मनाई जाएगी। मां शाकम्भरी के शरीर की कांति नीले रंग की है। उनके नेत्र नीलकमल के समान हैं, नाभि नीची है तथा त्रिवली से विभूषित मां का उदर सूक्ष्म है। मां शाकम्भरी कमल में निवास करने वाली हैं और हाथों में बाण, शाकसमूह तथा प्रकाशमान धनुष धारण करती हैं। मां अनंत मनोवांछित रसों से युक्त तथा क्षुधा, तृषा और मृत्यु के भय को नष्ट करने वाली हैं। फूल, पल्लव आदि तथा फलों से सम्पन्न हैं। उमा, गौरी, सती, चण्डी, कालिका और पार्वती भी वे ही हैं
इसलिए कहलाई मां शाकंभरी
देवी शाकंभरी को शाक सब्जियों और वनस्पतियों की देवी कहा गया है। मां शाकंभरी माता पार्वती का ही स्वरूप हैं। उनके अनेक नाम हैं, माता शाकंभरी को देवी वनशंकरी और शताक्षी भी कहा जाता है। देवी भागवत महापुराण में शाकंभरी माता को देवी दुर्गा का ही स्वरूप बताया गया है। इसके अनुसार पार्वतीजी ने शिवजी को पाने के लिए कठोर तपस्या की। उन्होंने अन्न-जल त्याग दिया था तथा जीवित रहने के लिए केवल शाक.सब्जियां ही खाईं। इसलिए उनका नाम शाकंभरी रखा गया। एक अन्य कथा के अनुसार जब पृथ्वी पर सौ वर्षों तक वर्षा नहीं हुई, तब मनुष्यों को कष्ट उठाते देख मुनियों ने मां से प्रार्थना की। तब शाकम्भरी के रूप में माता ने अपने शरीर से उत्पन्न हुए शाकों के द्वारा ही संसार का भरण-पोषण किया था। इस तरह देवी ने सृष्टि को नष्ट होने से बचाया। इसलिए शाकंभरी जयंति के दिन फल फूल और हरी सब्जियों को दान करने का सबसे ज्यादा महत्व है।
पूजा का महत्व
पौष पूर्णिमा के दिन जो भी साधक मां की स्तुति, ध्यान, जप, पूजा-अर्चना करता है, वह शीघ्र ही अन्न, पान एवं अमृतरूप अक्षय फल को प्राप्त करता है। भक्ति-भाव से माँ की उपासना करने वाले के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं और जीवन के सारे कष्ट मिटते हैं।
पूजाविधि
पौष मास की अष्टमी तिथि को प्रातः उठकर स्नान आदि कर लें। सर्वप्रथम गणेशजी की पूजा करें, फिर माता शाकम्भरी का ध्यान करें। लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर मां की प्रतिमा या तस्वीर रखें व मां के चारों तरफ ताजे फल और मौसमी सब्जियां रखें। गंगाजल का छिड़काव कर मां की पूजा करें। इनके प्रसाद में हलवा-पूरी,फल, शाक, सब्जी, मिश्री, मेवे का भोग लगता है। मां को पवित्र भोजन का प्रसाद चढ़ाकर इनकी आरती करें। इस दिन भगवान मधुसूदन की पूजा आराधना करने से विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मां शाकंभरी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार पृथ्वी पर भयंकर अकाल पड़ गया था। सूखे के कारण लोग जल के लिए तरसने लगे। पानी और खाद्य का गंभीर संकट देखकर भक्तों ने मां दुर्गा से इस समास्या का समाधान करने की प्रार्थना की। तब देवी दुर्गा ने शाकंभरी रूप का अवतार लिया। मां शाकंभरी के सौ नेत्रों से 9 दिन तक लगातार पानी बरसता रहा, जिससे सूखे की समस्या खत्म हो गई और हर जगह हरियाली छा गई।अपने सौ नेत्रों के कारण ये देवी शता
क्षी कहलाई।