जिला प्रतिनिधि=भुनेश्वर ठाकुर
*इस रस्म को देखने के लिए उमड़ती है भीड़
दंतेवाड़ा, 23 मार्च 2024। फागुन मड़ई के सातवें दिन बस्तर महाराजा कमलचंद भंजदेव फागुन मंडई में दंतेवाडा पहुंच कर शामिल हुए और पूजा अर्चना कर क्षेत्र वासियों के लिए आशीर्वाद मांगा । बस्तर महाराजा ने बताया कि 1923 से यह परंपरा चली आ रही है मै यहां पर राजा नही एक भक्त कि तरह आया हूं ,गंवर मार जैसी सभी महत्वपूर्ण रस्म होती है 11दिन विभिन्न प्रकार रस्म निभाई जाती आ रही है और आगे भी निभाई जायेगी। माता का आशीर्वाद मुझ पर बना रहेगा तो मैं प्रतिवर्ष आता रहूंगा। फागुन मंडई के सातवे दिन रात्रि के अंतिम पहर में ‘‘गंवर‘‘ शिकार का प्रदर्शन किया जाता है। फागुन मड़ई में सम्पन्न होने वाले शिकार नृत्यों में ‘‘गंवर मार‘‘ सबसे लोकप्रिय है। बस्तर में पाये जाने वाले दुर्लभ प्रजाति के ‘‘वन भैसा (गौर)‘‘ को स्थानीय हल्बी बोली में गंवर कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि मंडई में सम्पन्न होने वाले शिकार नृत्यों में ‘‘गंवर मार‘‘ नृत्य की रस्म सबसे भिन्न होती है। इसमें स्थानीय समरथ परिवार के व्यक्ति का ‘‘गंवर‘‘ का रूप धारण करता है तथा इसका शिकार का प्रदर्शन माई जी के प्रधान पुजारी द्वारा किया जाता है। इस रस्म की शुरुआत माई जी के मंदिर से बॉस के टोकरे में कलश स्थापना स्थल एवं प्रसाद ले जाने के साथ होती है। इसके बाद सेमर के कंटीले वृक्ष से तैयार ‘‘पंडाल गुड़ी‘‘ की लकड़ी से ‘‘नरसिंग देव‘‘ की चौकोर आकृति तैयार की जाती है। इस नरसिंग देव की विशेष आकृति को चार व्यक्ति कंधे पर लेकर मेंडका डोबरा की ओर जाते है।