नेल्सन मंडेला का कथन है यदि किसी व्यक्ति से उस भाषा में बात की जाए जो वह समझता है, तब वह उसके दिमाग में जाती है, लेकिन यदि उसकी अपनी भाषा में बात की जाए तब वह उसके दिल में जाती है. विविधता से भरे हमारे देश में अनेक भाषाएँ हैं और सभी महत्वपूर्ण किंतु अनेकानेक भाषाओं के बावजूद आज भी इंग्लिश ही किसी व्यक्ति के बुद्धिमान और जानकार होने का पैमाना है।
भारतीय भाषाएँ हिंदी, तेलगु, तमिल आदि सभी साहित्यिक रूप से समृद्ध और सम्पन्न हैं, लेकिन अफसोस है कि अभी भी अंग्रेजी का राज है. कहते हैं ना अंग्रेज चले गए अंग्रेजी छोड़ गए. यहाँ कहने का आशय बिलकुल भी यह नहीं कि अंग्रेजी खराब भाषा है। इंग्लिश का अपना अंतरराष्ट्रीय महत्व है और इंग्लिश भी आवश्यक है, लेकिन इंग्लिश के कारण भारतीय भाषाओं की उपेक्षा भी उचित नहीं। अनेक बार व्यक्ति कि पृष्ठभूमि भी उसकी भाषा पर पकड़ विनिश्चित करती है। आज के तकनीकी युग में बड़ी आसानी से एक भाषा से दूसरे में अनुवाद किया जा सकता है. प्रश्न सिर्फ महत्व का है। फ्रेंच, जर्मन लोग अपनी भाषा में ही बात करते हैं इंग्लिश में नहीं।