जिला प्रतिनिधि = भुनेश्वर ठाकुर
दंतेवाड़ा । दंतेवाड़ा फागुन मड़ई के सातवें दिन मेले का सबसे महत्वपूर्ण गंवर मार रस्म का आयोजन बुधवार सुबह 4 बजे किया जायेगा। इस दिन रात्रि के अंतिम पहर में ‘‘गंवर‘‘ शिकार का प्रदर्शन किया जाता है। फागुन मड़ई में सम्पन्न होने वाले शिकार नृत्यों में ‘‘गंवर मार‘‘ सबसे लोकप्रिय है। जिस देखने आसपास के जिलों और राज्यों सहित देश विदेश के सैलानी दंतेवाड़ा पहुंचते हैं ।
ज्ञात रहे कि बस्तर में पाये जाने वाले दुर्लभ प्रजाति के ‘‘वन भैसा (गौर)‘‘ को स्थानीय हल्बी बोली में गंवर कहा जाता है।
फागुन मंडई में होने वाले आखेट नृत्यों में ‘‘गंवर मार‘‘ नृत्य की रस्म सबसे भिन्न और रोचक और महत्वपूर्ण होती है। इसमें स्थानीय समरथ परिवार के व्यक्ति का ‘‘गंवर‘‘ का रूप धारण कर स्वांग करता है , मेढ़का डोबरा मैदान में इसका शिकार का प्रदर्शन माई जी के प्रधान जिया द्वारा किया जाता है। इस रस्म की शुरुआत माई जी के मंदिर से बॉस के टोकरे में कलश स्थापना स्थल एवं प्रसाद ले जाने के साथ होती है। इसके बाद सेमर के कंटीले वृक्ष से तैयार ‘‘पंडाल गुड़ी‘‘ की लकड़ी से ‘‘नरसिंग देव‘‘ की चौकोर आकृति तैयार की जाती है। इस नरसिंग देव की विशेष आकृति को आंगा देव लेकर मेंडका डोबरा की ओर जाते है। इसके सामने ग्रामीण हाथ में गमछे को लपेटकर कोडे की तरह बनाकर भागते हुए रास्ते में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर प्रहार करते चलते है।
नरसिंग देव की सवारी कलश स्थापना स्थल से होकर दूसरे रास्ते से वापस सिंह ड्योढ़ी की ओर लायी जाती है। इसके बाद वहीं ग्रामीण लंगोट धारण कर पंडाल गुड़ी से कलश स्थापना स्थल की ओर जाते हैं।