नुआपड़ा। ओडिशा के नुआपड़ा जिले के खरियार ब्लॉक से एक ऐसी घटना सामने आई है जिसने मानवता को शर्मसार कर रख दिया है। ये घटना हमें सोचने पर मजबूर कर देती है। एक 70 वर्षीय वृद्ध महिला अपनी 120 वर्षीय मां को चारपाई में घसीटते हुए बैंक ले जाने को मजबूर हो गई। घटना खरियार ब्लॉक के बरगांव की है। गत गुरुवार 11 जून की सुबह साढ़े नौ बजे जब 70 वर्षीय पूंजीमती शिखा अपनी 120 वर्षीय मां लाभो बाग को खाट में खींचते हुए उत्कल ग्रामीण बैंक की स्थानीय शाखा लेजाने लगी तो जिसने भी ये दृश्य देखा वो द्रवित हो उठा।
दरअसल लॉकडाउन के दौरान राहत पहुंचाने के उद्देश्य से सरकार जनधन खाताधारी गरीबों को प्रतिमाह 500 रुपये की सहायता राशि दे रही है। पिछले तीन माह में लाबे के खाते में 1500 रुपये जमा हुए। लाभो के खाते में आए रुपयों को लेने जब पूंजीमती जीमती बैंक पहुंची तो बैंक प्रबंधक व कर्मचारियों उसे ये कह कर मना कर दिया कि हितग्राही के बैंक आने पर ही पैसे दिए जाएंगे। पूंजीमती ने जब ये बताया कि उसकी शतायु मां शैयावस्था में है और जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रही। उसे बैंक लाना संभव नहीं है । तब भी बैंक कर्मचारियों का मन नहीं पसीजा। बारंबार गुहार लगाने पर भी वे नहीं माने और हितग्राही के बैंक आने पर ही पैसे देने की बात पर अड़े रहे।
प्राप्त जानकारी के अनुसार बरगांव में लाभो अपनी बेटी पूंजीमती शिखा व दामाद पवन शिखा के साथ एक छोटी सी झोपड़ी में दिन काट रहीं हैं। वृद्धावस्था के कारण कोई भी कामधंधा करने में समर्थ नहीं है। न कोई जमापूंजी और न ही कोई खेती-बाड़ी। पूरा परिवार सरकार से मिलने वाली पेंशन व सहायता राशि पर गुजर बसर करने को मजबूर है। आर्थिक तंगी के कारण परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। खाते में पैसे आए तो मन में आस जगी। मां ने बेटी को पैसे लेने बैंक भेजा तो कर्मचारियों ने खाली हाथ लौटा दिया।
पूंजीमती ने गांव के वार्ड मेंबर से सहायता मांगी। निवेदन पर वार्ड मेंबर हुमांयू बघेल ने खुद बैंक जाकर बैंक कर्मियों को विश्वास दिलाने का प्रयास किया। बैंक कर्मचारियों को लाभो के परिवार की स्थिति से अवगत कराया । यहाँ तक की खुद गारंटी लेने की बात कही किन्तु, वे नहीं माने। बैंक के कर्मचारियों ने साफ कह दिया कि जबतक हितग्राही खुद आकर दस्तखत नहीं करेगी पैसे नही निकलेंगे।
अर्थ के अभाव में पूंजीमती व पवन गंभीर रूप से बीमार शतायु लाबे को लेजाने के किए रिक्शा-गाड़ी का खर्चा वहन करने में सक्षम नहीं थे। और कोई रास्ता भी नही बचा था। लाभो को खाट में बोह कर लेजाने का प्रयास किया गया किन्तु शारीरक दुर्बलता के कारण ये भी संभव नहीं हो सका। मरता क्या न करता।
आखिर में 70 वर्षीय पूंजीमती अपनी 120 वर्षीय माँ को चारपाई में लेटाकर खींचते हुए घर से लगभग आधा किलोमीटर दूर स्थित उत्कल ग्रामीण बैंक लेजाने को मजबूर हो गई। रास्ते में जिसने भी ये दृश्य देखा उसका मन विचलित हो गया। इस हृदयविदारक दृश्य को देख लोग अवाक रह गए। कुछ लोगों ने इस घटना का वीडियो भी बनाया जिसके वायरल होने के बाद पूरा मामला सामने आया।
लोगों का कहना है कि जैसे-तैसे बड़ी मुश्किलों का सामना करने के बाद बैंक पहुंची तो दोनों वृद्धाओं के प्रति बैंक कर्मचारियों ने कोई संवेदना भी प्रकट नहीं की। लाभो (हितग्राही)के अंगूठे का निशान लिया और पैसा थमा दिया। शनिवार को वीडियो वायरल होने के बाद ये मामला सामने आया। बैंक कर्मचारियों के इस अमानवीय व्यवहार से लोगों में आक्रोश है। शाखा प्रबंधक अजित कुमार प्रधान का कहना है कि हमने पूंजीमती को घर आकर राशि देने की बात कही थी। किन्तु बैंक में भीड़ होने के चलते व्यस्तता के कारण हम उनकी मदद नहीं कर सके। साल 2016 में हुई नोटबन्दी के दौरान सीनियर सिटीजन को बैंकों की लाइन में हुई दिक्कतों और उन्हें सेवा देने में बैंकों की बेरुखी के बाद रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया ने अधिसूचना जारी करते हुए बैंकों को निर्देश दिया कि सीनियर सिटीजन एवं शारीरिक रूप से असमर्थ लोगों को उनके घर पर बुनियादी बैंकिंग सुविधाएं यानी नकदी निकालना-जमा कराना, चेक बुक मंगाना और डिमांड ड्रॉफ्ट बनाने जैसी सेवा उपलब्ध कराएं जाए। लेकिन इसके बाद भी बैंक के कर्मचारी गाइडलाइन को पालन नहीं कर रहे हैं।
मैने बैंक कर्मचारियों को स्थिति से अवगत कराया किन्तु वे नही माने। मां को लाने पर ही पैसा देने की बात कहीं। रिक्शा-गाड़ी में मां को लेजाने के लिए पैसे नहीं थे। इसलिए मजबूरन उन्हें चारपाई पर खींचते हुए लेजाना पड़ा।
- पूँजीमती शिखा (लाभो की बेटी)
दरअसल लॉकडाउन के दौरान राहत पहुंचाने के उद्देश्य से सरकार जनधन खाताधारी गरीबों को प्रतिमाह 500 रुपये की सहायता राशि दे रही है। पिछले तीन माह में लाबे के खाते में 1500 रुपये जमा हुए। लाभो के खाते में आए रुपयों को लेने जब पूंजीमती जीमती बैंक पहुंची तो बैंक प्रबंधक व कर्मचारियों उसे ये कह कर मना कर दिया कि हितग्राही के बैंक आने पर ही पैसे दिए जाएंगे। पूंजीमती ने जब ये बताया कि उसकी शतायु मां शैयावस्था में है और जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रही। उसे बैंक लाना संभव नहीं है । तब भी बैंक कर्मचारियों का मन नहीं पसीजा। बारंबार गुहार लगाने पर भी वे नहीं माने और हितग्राही के बैंक आने पर ही पैसे देने की बात पर अड़े रहे।
प्राप्त जानकारी के अनुसार बरगांव में लाभो अपनी बेटी पूंजीमती शिखा व दामाद पवन शिखा के साथ एक छोटी सी झोपड़ी में दिन काट रहीं हैं। वृद्धावस्था के कारण कोई भी कामधंधा करने में समर्थ नहीं है। न कोई जमापूंजी और न ही कोई खेती-बाड़ी। पूरा परिवार सरकार से मिलने वाली पेंशन व सहायता राशि पर गुजर बसर करने को मजबूर है। आर्थिक तंगी के कारण परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। खाते में पैसे आए तो मन में आस जगी। मां ने बेटी को पैसे लेने बैंक भेजा तो कर्मचारियों ने खाली हाथ लौटा दिया।
पूंजीमती ने गांव के वार्ड मेंबर से सहायता मांगी। निवेदन पर वार्ड मेंबर हुमांयू बघेल ने खुद बैंक जाकर बैंक कर्मियों को विश्वास दिलाने का प्रयास किया। बैंक कर्मचारियों को लाभो के परिवार की स्थिति से अवगत कराया । यहाँ तक की खुद गारंटी लेने की बात कही किन्तु, वे नहीं माने। बैंक के कर्मचारियों ने साफ कह दिया कि जबतक हितग्राही खुद आकर दस्तखत नहीं करेगी पैसे नही निकलेंगे।
अर्थ के अभाव में पूंजीमती व पवन गंभीर रूप से बीमार शतायु लाबे को लेजाने के किए रिक्शा-गाड़ी का खर्चा वहन करने में सक्षम नहीं थे। और कोई रास्ता भी नही बचा था। लाभो को खाट में बोह कर लेजाने का प्रयास किया गया किन्तु शारीरक दुर्बलता के कारण ये भी संभव नहीं हो सका। मरता क्या न करता।
आखिर में 70 वर्षीय पूंजीमती अपनी 120 वर्षीय माँ को चारपाई में लेटाकर खींचते हुए घर से लगभग आधा किलोमीटर दूर स्थित उत्कल ग्रामीण बैंक लेजाने को मजबूर हो गई। रास्ते में जिसने भी ये दृश्य देखा उसका मन विचलित हो गया। इस हृदयविदारक दृश्य को देख लोग अवाक रह गए। कुछ लोगों ने इस घटना का वीडियो भी बनाया जिसके वायरल होने के बाद पूरा मामला सामने आया।
लोगों का कहना है कि जैसे-तैसे बड़ी मुश्किलों का सामना करने के बाद बैंक पहुंची तो दोनों वृद्धाओं के प्रति बैंक कर्मचारियों ने कोई संवेदना भी प्रकट नहीं की। लाभो (हितग्राही)के अंगूठे का निशान लिया और पैसा थमा दिया। शनिवार को वीडियो वायरल होने के बाद ये मामला सामने आया। बैंक कर्मचारियों के इस अमानवीय व्यवहार से लोगों में आक्रोश है। शाखा प्रबंधक अजित कुमार प्रधान का कहना है कि हमने पूंजीमती को घर आकर राशि देने की बात कही थी। किन्तु बैंक में भीड़ होने के चलते व्यस्तता के कारण हम उनकी मदद नहीं कर सके। साल 2016 में हुई नोटबन्दी के दौरान सीनियर सिटीजन को बैंकों की लाइन में हुई दिक्कतों और उन्हें सेवा देने में बैंकों की बेरुखी के बाद रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया ने अधिसूचना जारी करते हुए बैंकों को निर्देश दिया कि सीनियर सिटीजन एवं शारीरिक रूप से असमर्थ लोगों को उनके घर पर बुनियादी बैंकिंग सुविधाएं यानी नकदी निकालना-जमा कराना, चेक बुक मंगाना और डिमांड ड्रॉफ्ट बनाने जैसी सेवा उपलब्ध कराएं जाए। लेकिन इसके बाद भी बैंक के कर्मचारी गाइडलाइन को पालन नहीं कर रहे हैं।
मैने बैंक कर्मचारियों को स्थिति से अवगत कराया किन्तु वे नही माने। मां को लाने पर ही पैसा देने की बात कहीं। रिक्शा-गाड़ी में मां को लेजाने के लिए पैसे नहीं थे। इसलिए मजबूरन उन्हें चारपाई पर खींचते हुए लेजाना पड़ा।
- पूँजीमती शिखा (लाभो की बेटी)