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Tuesday, June 16, 2020

जल, जंगल, जमीन, किसान, आदिवासियों के संरक्षण पर राज्य सरकार के बदलते मंसूबे : एकता परिषद



सुनील यादव 
गरियाबंद। हर क्षेत्र से जुड़ी जल, जंगल, जमीन, किसान, आदिवासियों के संरक्षण,संगठन से जुड़ी विशेषताओं व राज्य सरकार के किए गए वादों के बदलते मंसूबों पर एकता परिषद के वरिष्ठ कार्यकर्ता प्रशांत कुमार पिवि ने बताया की एकता परिषद एक जन संगठन है जिसमें और कई अन्य संगठन जुड़े हुए हैं ।  संस्था की प्रमुखता मूल मुद्दोंं को उठाना है । राष्ट्रीय एकता परिषद का गठन 1990 में किया गया है। इसका उद्देश्य साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद और संकीर्णता की बुराइयों से निपटना है। विविधता में एकता, धर्मों की आजादी, धर्मनिरपेक्षता, बराबरी, सामाजिक-आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय और सभी समुदायों में भाइचारे को अपने उद्देश्य घोषित किए थे।  जल जंगल जमीन लोगोंं के जीने के संसाधन हैं, प्राकृतिक संसाधन पर लोगों को अधिकार मिले, इस अधिकारों को लेकर, खासकर वंचित समुदायों को जोड़ा गयाा है,जिसमें आदिवासी, मजदूर, किसान, मध्यम परिवार, मध्यम किसान, बड़े किसान, शामिल है । एकता परिषद् द्वारा 2007 में जनादेश 2012 में जन सत्याग्रह 2018 में जन आंदोलन 2019 में जय जगत यात्रा किया गया । जल जंगल जमीन के अधिकार के लिए ग्वालियर से दिल्ली पूरे पच्चीस हजार आदिवासियों ने चलकर 29 दिन की यात्रा पूरा किया था । आदिवासी और परम्मपरागत वन निवासी को 2005 13 दिसम्बर तक के पटा् देने का कानून को लागू किए जाने की घोषणा हुई, जिसमें वन अधिकार अधिनियम कानून बनाए जाने की घोषणा के पश्चात आंदोलन को विराम दिया गया था । राज गोपाल जी के नेतृत्व में अपने अधिकार के लिए मूल मुद्दों को लेकर 2019 में जय जगत यात्रा शुरू किया गया ।  इस तरह जल जंगल जमीन किसान आदिवासियों के अधिकार की मांग को लेकर लगातार सरकारों के समक्ष रखा जाता रहा है । सरकार के मंसूबे पहले वादा किया गया कि वन अधिनियम के तहत सभी वन वासी को पट्टा प्रदाय किया जाना है । पर धीरे-धीरे सरकार अपने रवैया को बदलते नजर आ रहा है,एकता परिषद की मांग है कि सरकार द्वारा वन विभाग को वन अधिनियम के तहत पट्टा प्रदान किए जाने की जो जिम्मेदारी दी गई है, उसे ग्राम स्तर में 15 लोगों की जो समिति तैयार की गई है उसे ही यह जिम्मेदारी दी जावे, जिससे स्थानीय लोगों की पीड़ा को समिति के माध्यम से इसका निर्णय लिया जाए । और जितने भी वनवासी हैं उन्हें वन भूमि पट्टा शीघ्र प्रदान किया जाय पर सरकार द्वारा जल जमीन जंगल के संरक्षण को लेकर अनदेखा किया जा रहा है।

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