कागद की लिखी में उलझे रहने वाले इस मार्ग पर नहीं चल सकते. वे विद्वान व वक्ता तो हो सकते हैं लेकिन शील की सुगंध से भरे साधक नहीं हो सकते. अनुभूति, आचरण और साधना के बिना विद्वता सिर्फ भटकाती हैं. बुद्धि विलास व वाणी विलास में उलझाती हैं. उनकी दशा तो ऐसी है कि औरों को प्रकाश दिखाते हैं लेकिन खुद अंधकार में रहते हैं. 'औरन को करें चांदना, आप अंधेरे माहि'. ऐसा व्यक्ति भला कबीर के मार्ग पर कैसे चल सकता है?
यहां स्वयं को मानवता के प्रति समर्पित करना होता है. रुढियों से चिपका हुआ, ऐशोआराम में डूबा व सुविधा भोगी व्यक्ति कबीर के मार्ग पर नहीं चल सकता. कबीर के साथ चलने के लिए तो अपने हाथों अपने घर में आग लगानी पड़ती है. 'जो घर फूंके आपना, चले हमारे साथ'. घर यानी सड़ी गली मान्यताओं का घेरा, सुख सुविधाओं का नशा.
मन पर काबू रखने की साधना है. इसने छापा, तिलक, भभूत, जटा दाढी की कोई जरूरत नहीं. कबीर की सहज समाधि, सहज ध्यान के लिए हठयोग, कुंडलिनी जागरण, नाग श्रवण, ज्योति दर्शन के लफड़े में नहीं पड़ना होता है. कबीर साधना बाहर भटकने की बजाय अपने भीतर के उजाले को देखने की है. मन पर काबू कर विकारों को दूर कर सुख शांति की साधना है.
कबीर के व्यक्तित्व के इतने आयाम हैं कि आप उन्हें कहीं भी फिट कर सकते हैं लेकिन वह हर जगह अपनी अलग पहचान बनाते हैं. वे सब में फिट होकर भी सबसे अलग है जिस प्रकार विभिन्न नदियां समुद्र में मिलकर अपना अस्तित्व खो देती हैं और समुद्र रूप हो जाती हैं उसी प्रकार जो भी कबीर के पास गया अपना अस्तित्व खो कर कबीर में मिल गया. कबीर में सबको समाहित करने की अद्भुत शक्ति व क्षमता थी क्योंकि उनके हृदय में प्रेम व मानवता की अनवरत शीतल धारा बहती थी।
कबीर का मार्ग प्रेम का मार्ग है-
इस मार्ग में कोई भी चल सकता है लेकिन अहंकार व जाति, धर्म व संप्रदाय की संकीर्ण भावना के लिए यहां कोई गुंजाइश नहीं है. अहंकारी, स्वार्थी व संकुचित व्यक्ति इस पर नहीं चल सकता. 'शीश उतारे भुई धरे ' की शर्त को पूरा करने वाला ही इसमें प्रवेश कर सकता है. कबीर की वाणी में प्रेम व करुणा के लिए सबसे ऊंचा स्थान है जिसने जीवन में प्रेम को पा लिया, उसने कबीर को पा लिया. सच्चे अर्थों में पंडित हो गया. 'ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय'कबीर का मार्ग सीधा व सरल है-
सपाट मार्ग. किसी प्रकार की बनावट नहीं लेकिन नकलीपन या जटिलता नहीं है. ढोंगी व बनावटी व्यक्ति यहां ज्यादा दूर तक नहीं टिक सकता. ऊंच नीच, जाति धर्म के भेदभाव यहां समाप्त हो जाते हैं क्योंकि यह मानवता का राजमार्ग है.कबीर का मार्ग क्रांति का मार्ग है-
कबीर की वाणी भक्ति की नहीं, क्रांति की वाणी है. क्रांति की जगमगाती मशाल. अंधविश्वासी व रूढ़ीवादी लोग कबीर के मार्ग पर नहीं चल सकते. कबीर के साथ चलने के लिए विद्रोही होना पड़ता है. लेकिन किसके प्रति विद्रोह? शोषण, पाखंड, अज्ञान, अंधविश्वास, कुरीतियों, सांप्रदायिकता और इसकी आड़ में लूट के खिलाफ विद्रोह.यहां स्वयं को मानवता के प्रति समर्पित करना होता है. रुढियों से चिपका हुआ, ऐशोआराम में डूबा व सुविधा भोगी व्यक्ति कबीर के मार्ग पर नहीं चल सकता. कबीर के साथ चलने के लिए तो अपने हाथों अपने घर में आग लगानी पड़ती है. 'जो घर फूंके आपना, चले हमारे साथ'. घर यानी सड़ी गली मान्यताओं का घेरा, सुख सुविधाओं का नशा.
कबीर का मार्ग धर्म (धम्म) का मार्ग है-
सिर्फ धर्म. विशेषण लगाना चाहो तो 'मानव धर्म' कह सकते हैं. जो लोग अपने परंपरागत धर्म संप्रदाय की दकियानूसी मान्यताओं से मुक्त नहीं हो सकते, वे कबीर को नहीं समझ सकते.कबीर का धर्म सत्य, प्रेम, करुणा व मानवता का धर्म है.कबीर का मार्ग सहज साधना का मार्ग है-
सहज ध्यान साधना, सम्यक समाधि का मार्ग है. एकदम सरल, स्वाभाविक व प्राकृतिक. किसी प्रकार की कोई बनावट, दिखावा व आडंबर नहीं. एक ऐसी ध्यान साधना का मार्ग जिसमें घोर तप, काया कष्ट के लिए कोई स्थान नहीं. लेकिन क्रोध लोभ मोह तृष्णा की वासनाओं का त्याग जरूरी है.मन पर काबू रखने की साधना है. इसने छापा, तिलक, भभूत, जटा दाढी की कोई जरूरत नहीं. कबीर की सहज समाधि, सहज ध्यान के लिए हठयोग, कुंडलिनी जागरण, नाग श्रवण, ज्योति दर्शन के लफड़े में नहीं पड़ना होता है. कबीर साधना बाहर भटकने की बजाय अपने भीतर के उजाले को देखने की है. मन पर काबू कर विकारों को दूर कर सुख शांति की साधना है.
कबीर का मार्ग निर्मल हृदय का मार्ग है-
कबीर के मार्ग पर चलने के लिए पंडिताई, बौद्धिक विद्वता, वाकपटुता और बहुत शास्त्रीय ज्ञान की जरूरत नहीं है. इसके लिए तो सरल लेकिन निर्मल हृदय की जरूरत है. प्रेम, करुणा, विनम्रता और मानवता के प्रति समर्पण की जरूरत है. ग्रंथ, किताबी ज्ञान, पांडित्य का अहंकारी व्यक्ति इस मार्ग पर नहीं चल सकता. सिर्फ दूसरों की निंदा करना और अपने किताबी ज्ञान के अहंकार से भरा धर्मगुरु, संस्था का लीडर या मिशन व्यक्ति मंजिल तक नहीं पहुंच सकता. वह अपने अहंकार के बोझ से खुद भी डूबता है और दूसरों को भी डूबोता है.कबीर का मार्ग सत्य का मार्ग है-
यहां किसी प्रकार का झूठ नहीं चल सकता. चाहे वह धर्म या ईश्वर के नाम पर ही क्यों ना हो. सत्य और झूठ दोनों साथ में नहीं चल सकते. इस मार्ग पर चलने वाले को स्वयं व समाज के प्रति सच्चा ईमानदार होना होता है.कबीर का मार्ग नकद सौदे का मार्ग है-
यहां उधारी नहीं चल सकती. इसमें तो इस हाथ दो और उस हाथ लो की बात है. कल के भरोसे पर रहने वाला इस पर नहीं चल सकता. इसमें तो आज और अभी की बात है. और इसका फल भी कल या परलोक में नहीं बल्कि आज और अभी तुरंत मिलता है.कबीर का मार्ग समता, स्वतंत्रता व बंधुत्व का मार्ग है-
एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य से जोड़ने का मार्ग. स्वयं को स्वयं से जोड़ने का मार्ग. स्वयं के भीतर झांकने, निरीक्षण करने व अनुभव करने का मार्ग. तर्क, विवेक, सत्य व मानवता का मार्ग है. एकदम सरल और सपाट.कबीर के व्यक्तित्व के इतने आयाम हैं कि आप उन्हें कहीं भी फिट कर सकते हैं लेकिन वह हर जगह अपनी अलग पहचान बनाते हैं. वे सब में फिट होकर भी सबसे अलग है जिस प्रकार विभिन्न नदियां समुद्र में मिलकर अपना अस्तित्व खो देती हैं और समुद्र रूप हो जाती हैं उसी प्रकार जो भी कबीर के पास गया अपना अस्तित्व खो कर कबीर में मिल गया. कबीर में सबको समाहित करने की अद्भुत शक्ति व क्षमता थी क्योंकि उनके हृदय में प्रेम व मानवता की अनवरत शीतल धारा बहती थी।