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Monday, July 13, 2020

कोरोना महामारी की वृहद गंभीर मार, जिसपर दम तोड़ रही मानवीय संवेदनाएं

सुनील यादव, गरियाबंद 
देश में आज की  स्थिति  किसी से अब छिपी नही है  एक तरफ बढ़ती अमीरी की चमक से कुछ लोगों की आंखें चकाचौंध हो रही हैं तो दूस
री तरफ करोड़ों-करोड़ भरतीयों की आंखों का अपनी गरीबी व मजबूरी पर आसुओं में डबडबा जाना रोजाना की कहानी है। हकीकत तो ज्यादा बदतर है मगर यदि हम सरकारी आंकड़ों की ही माने तो देश में 37.2 प्रतिशत यानी 40 करोड़ लोगों को दो वक्त का भोजन भी  नसीब नहीं है।
 देश में 77 प्रतिशत लोगों की प्रतिदिन आमदनी 20 रू. से भी कम है। कालाबाजारियों के राज में आसमान छूती महंगाई में 20 रू. में करोड़ों लोग कैसे जिंदगी गुजर बसर कर रहें हैं इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे हालात में जी रहे लोग अपने बच्चों को कैसे शिक्षा दे पायेंगे ?
कैसे उनके स्वास्थ्य की देख-रेख करेगें ?
उनके भविष्य को कैसे बेहतर बना पायेंगे ?
यह आप खुद सोच सकते हैं। जिन बच्चों को ये किसान-मजदूर अपने स्वयं नंगे व भूखे रहकर किसी तरह इंटरमीडिएट,स्नातक,परास्नातक की शिक्षा दिला भी देते हैं फिर भी उनका क्या हश्र है ?
इन डिग्रीधारी करोड़ों युवक-युवतियों की आधी उम्र रोजगार की तलाश में कार्यालयों के चक्कर लगाने में गुजर जा रही है। नौकरी न मिलने पर थके-हारे कुछ युवा स्वरोजगार की योजनाएं बनाते हैं,
जिसके लिए लोन हेतु बैंकों का चक्कर लगाते- लगाते आधी ऊर्जा खर्च हो जाती है।
किसी ने न सोचा था ?
ऐसा दौर भी आयेगा, शायद किसी ने न सोचा था कि ‘सोने की चिड़िया’ कहे जाने वाले देश में भ्रष्टाचार का बोलबाला इस हद तक होगा कि गरीबी मिटाने का राग अलापने वाले ही गरीबों का हक लील जायेंगे । और गरीब भूखों मरेंगे, घोटालों पर घोटाला करने वालों की पौ बारह होगी,मॅहगाई सुरसा की भांति ऐसा मुंह फैलायेगी कि देश का आम नागरिक त्राहि-त्राहि करेगा और लोग भूखों मरने को विवश होंगे उपरोक्त ऐसे तमाम सवाल केवल मेरे मन मस्तिस्क में ही नहीं बल्कि देश के सभी जागरूक नागरिकों के दिलों-दिमाग में हलचल मचाते है। बावजूद इसके हम मौन है चुपमाप बैठे हैं आखिर क्यों ? यह एक यक्ष प्रश्न है ! क्या यह सोंचकर कि समृद्ध हो चुके भ्रष्टाचार पर अब नियंत्रण नही किया जा सकता, भूंख से मरने वालों गरीबों को खाद्यान मुहैया नहीं कराया जा सकता,चरित्र से गिर चुके राजनेताओं द्वारा संचालित सरकारों का तख्ता पलट नहीं किया जा सकता । आस्तीन में पलते भ्रष्टाचार विषियर नागों का फन नही कुचला जा सकता ? आज देश के जो भी हालात है उसमें काफी हद तक हम और आप भी दोषी हैं जरूरत तो आत्म अवलोकन की है । जरा सोंचे क्या हम गांव स्तर पर वर्तमान बदले परिवेश में स्वच्छ छवि व ईमानदार व्यक्ति को प्रधान बनवा पाते है । शायद नही क्यों कि उस समय हमारे दिलो-दिमाग में राष्ट्र निर्माण व सामाजिक संस्वना का उद्देश्य गायब हो चुका होता है,यही कारण है कि आज लोकतंत्र के लिये भ्रष्टाचार मुक्त सरकार मात्र एक सपना बनकर रह गई है । विश्व में अनोखी पहचान रखने वाले भारत की लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को संचालित करने वाले जनप्रतिनिधि राजनेता जातिवाद,परिवारवाद, स्वार्थवाद और क्षेत्रवाद का चोला पहनकर अवसरवादी राजनीति की दूषित चाल से देश के आम नागरिकों को गुमराह कर खुले मन से भ्रष्टाचार में लिप्त होकर अनैतिक धन उगाही करते हुये देश की जड़ों को खोखला करने में जुटे हुये हैं। इनकी इन करतूतों से देश का आम नागरिक भलीभांति वाकिफ भी है,यही वजह है कि आज देश के हर कोने में बुद्धिजीवी,समाजसेवी,जागरूक वर्ग में आस्तीन में पल रहे इन विषियर नागों के फन की चर्चा बड़े पैमाने पर हो रही है । ये विषियर नाग लगातार देश की आम जनता को डसने में मशगूल है।
वर्तमान में देश की स्थिति किसी भारतीय से छिपी नही है आज देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते गरीबों की संख्या में निरंतर इजाफा हो रहा है । ग्रामसभा से लेकर संसद तक देश की आम जनता का शोषण करने वाले राजनेताओं एवं अफसरशाहों की भ्रष्टाचारी नीतियॉ पूरी तरह से जनता की जेबें खाली कर अपनी-अपनी तिजोरियॉ भरने की फेहरिस्त में जुटे हैं। ऐसे में सुनिश्चित है कि यदि इन विषियर नागों के फैलते फन को कुचलने के लिए हम और आप संगठित न हुये या यूॅ कहें कि देश का आम नागरिक जागरूक न हुआ तो खुद तो शाषित होते हुये अनचाही अनजानी पीड़ा का शिकार बनेगा ही आने वाली पीढ़ी को भी नारकीय जीवन देकर जायेगा।

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