सरकार जागेगी तो पिछड़े क्षेत्र में विकास की गति बढ़ेगी।
सुनील यादव समाचार संपादक रिपोर्टर क्रांति की रिपोर्ट........../गरियाबंद - उतर भारत के रहवासियों को भूपेश बघेल की कांग्रेस शासन में उम्मीद जागी थी कि पिछले 30 वर्षों से उपेक्षित अलेक्जेंडर पत्थर का दोहन का लाभ अर्जित कर,राजस्व आय में से विकास कार्यों में खर्च किया जायेगा,लेकिन कांग्रेस शासन को सत्तासीन हुए 2 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं किन्तु सरकार ने देवभोग इलाके को अब तक उपेक्षित ही रखा है। क्षेत्र में विकास कार्यों को गति देने के लिए अब तक दो वर्षों में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस सरकार एलेक्जेन्डर खदान के लिए गंभीर नहीं है, या फिर जान बूझकर आँखें मुदें हुए है और पत्थर तस्करों को खुली छुट दे रखी हैं।
देश-विदेश में ख्याति अर्जित करने वाली रत्नगर्भा देवभोग इलाके के ग्राम सेनमुड़ा में पाए जाने वाले बेशकीमती अलेक्जेंडर पत्थर का प्रचुर भंडार होने के बावजूद क्षेत्र के चप्पे-चप्पे में गरीबी और पिछड़ेपन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। अमीर धरती के गरीब लोगों की पीड़ा सरकार को दिखती क्यों नहीं ? कीमती पत्थरों के नाम पर ‘‘राई का पहाड’’ खड़ा कर दिया गया। क्षेत्र के लोगों ने आरोप लगाया है कि खामोशी की चादर ओढ़े भूपेश बघेल की सरकार कीमती पत्थरों के दोहन और क्षेत्र के विकास के लिए अब तक कोई कारगर कदम क्यों नहीं उठा पाई।
यही वजह है कि देवभोग इलाके के रहवासियों को आजादी के बाद भी मूलभूत समस्या से निजात नहीं मिली जिससे गरीबी,पिछड़ापन और भूखमरी क्षेत्र की नियति बन चुकी है। राज्य में कांग्रेस के सत्तासीन होने के पश्चात् खनिज संपदा को दोहन को लेकर उम्मीदें हरी हुई थी । लेकिन सत्तापक्ष ‘वेट एंड सी’ के तर्ज पर चलने लगी है।
देवभोग क्षेत्र का ग्राम सेनमुड़ा बेशकीमती अलेक्जेंडर पत्थर पाए जाने के कारण सन् 1988 में एकाएक चर्चा में आया। देवभोग विकासखंड से 8 किमी दूर ग्राम सेनमुड़ा एक छोटा सा गाँव है,जो कि उड़ीसा के धरमगढ़ मुख्यालय से लगा हुआ है। सन् 1988 में इस छोटी सी बस्ती में सहदेव गोड़ के 15-16 डिसमील की खेतीहर जमीन पर एक छोटा सा 5-7 ग्राम वजन का पत्थर यहां के छोटे-छोटे बच्चों को दिखा था।
उक्त पत्थर को बच्चों ने गाँव के गजमन गोंड़ नामक 16 वर्षीय बालक से लेकर अपने घर वालों को दिखाया और इसी बीच गाँव के नरही नाम के व्यक्ति ने चमकीले पत्थर को 4 हजार रूपये में खरीद लिया। इसके बाद इस पत्थर को धरमगढ़ उड़ीसा के एक व्यापारी के पास 17 हजार रूपये में बेचने की खबर सुनते ही अंचल में यह बात आग की तरह फैल गई। यह खबर अखबारों के माध्यम से उड़ीसा और मध्यप्रदेश में भी तूफानी गति से फैल गई।
उड़ीसा, म.प्र., छ.ग. के बड़े-बड़े शहरों से लोग देवभोग के इस बहुचर्चित सेनमुड़ा गाँव पहुँचने लगे थे और वहां पहुंचकर ग्रामीणों से गुफ्तगू और लेन-देन करने तथा कीमती पत्थर के खरीद-फरोख्त की खबरें भी काफी चर्चा में रही। कहा जाता है कि सेनमुड़ा में कीमती रत्न बेचने-खरीदने का धंधा खूब फला-फूला। इसी के चलते देवभोग और उड़ीसा क्षेत्र के कुछ व्यापारियों की कीमती पत्थरों की तस्करी में लिप्त होने की भनक जैसे ही पुलिस को लगी, पुलिस ने आरोपियों को रंगे हाथ गिरफ्तार करने की योजना बनाई और रत्न पारखियों पर पैनी नजर रखने पर अंततः उन्हें सफलता मिली। सितंबर 1988 में देवभोग के तत्कालीन थाना प्रभारी अनिल पाठक ने योजनाबद्ध तरीके से रायपुर के मीरा लाॅज में देवभोग के एक व्यापारी सत्यनारायण शारदा और काॅपरेटिव बैंक के लिपिक राजेश पाण्डेय के पास से 19 टुकड़े कीमती पत्थर तथा 62 हजार रूपये से भरा एक सुटकेस बरामद किया । इन दोनों आरोपियों को गिफ्तार कर न्यायालय में पेश किया गया था ।
देवभोग क्षेत्र में अलेक्जेंडर नाम के कीमती पत्थरों का भंडार है इस बात की पुष्टि मीरा लाॅज में पुलिस द्वारा टुकडों की जांच के बाद हुई । बताते हैं कि तत्कालीन थाना प्रभारी अनिल पाठक पकड़े गये पत्थरों की जांच के लिए स्वयं कलकत्ता गये थे।
जहां 19 जुन 1989 को कलकत्ता के पेट्रोलाजी लैब में जांच कराई गई तथा सभी पत्थरों को जांच के बाद अलेक्जेंडर बताया गया । जानकार बताते हैं कि यह पत्थर खुन के सामान लाल दिखता है तथा नौ विभिन्न प्रकार के रंगों में भी दिखलाई देता है ।
गौरतलब है कि यह अलेक्जेंडर पत्थर विश्व में केवल (रूस) में मिलता है। इसके बाद छत्तीसगढ़ राज्य के अंतिम सीमा देवभोग क्षेत्र के गाँव सेनमुड़ा में पाया जाता है। वहीं देवभोग क्षेत्र के ग्राम लाटापारा में भी अलेक्जेंडर मिलने के संकेत के बाद पिछले 25 वर्षों से वहां के कुछ एकड़ भूमि को खनिज विभाग ने प्रतिबंधित घोषित किया है। जिसकी देखरेख गांव के कोटवार के जिम्मे है। सेनमुड़ा गांव के अलेक्जेंडर पत्थर को पेट्रोलाजी लेब द्वारा जब सही प्रमाणित किया गया, तब कलकात्ता के एक अखबार ‘‘विश्वामित्र’’ ने देवभोग क्षेत्र में बेशूमार कीमती पत्थर अलेक्जेंडर पाए जाने की खबर प्रकाशित की थी। अविभाजित मध्यप्रदेश सरकार ने कीमती पत्थरों की चोरी रोकने सन् 1992-93 में सुरक्षा का सारा जिम्मा 1-4 एस.ए.एफ के जवानों पर डाल दी थी ।
लेकिन पिछले 20 वर्ष से खदान को भगवान भरोसे खुला छोड़ दिया गया है।
जानकारी के मुताबिक माह अप्रैल 1992 में देवभोग में अलेक्जेंडर कीमती पत्थर (खेतनुमा) खदान में रातों-रात फिल्मी स्टाइल में सीमेंट क्रकींट से अटी पड़ी थी। बताते हैं कि अलेक्जेंडर रहित क्षेत्र में रायपुर के दो प्रभावशाली कांग्रेस नेता तत्कालीन थाना प्रभारी शुक्ला की मौजूदगी में 10-12 ग्रामीण मजदूरों की मदद से कुल्हाड़ी फावड़े चलाकर फटाफट कीमती मिट्टी को स्थल में खड़ी मेटाडोर में डालकर अपने गंतव्य रायपुर की आधी रात बाद रवाना हो गये थे। जिसकी चर्चा पूरे छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश में रही।
इस घटना के पश्चात मौके की ताक में बैठे भाजपा (विपक्ष) ने अलेक्जेंडर खदान से पुलिस की मौजूदगी में रातों रात डकैती की घटना को एक प्रमुख मुद्दा बनाकर भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल की अगुवाई में विधानसभा में काफी हो-हल्ला मचाकर उठाया था । पर कांग्रेस की सरकार होने से डकैती की घटना में लीपापोती कर थाना प्रभारी को निलंबित कर फाइल बंद कर दी गई । जबकि इस दौरान विपक्ष लगातार आरोपियों को गिरफ्तार करने की मांग करता रहा। इस घटना के बाद कांग्रेस सरकार के कान खड़े हो गए और इससे सबक लेकर सरकार ने कीमती सेनमुड़ा अलेक्जेंडर तथा मैनपुर विकासखंड के पैलीखंड हीरा खदान में सुरक्षा की दृष्टि से एस.ए.एफ. के जवान लगा दिए थे।
देवभोग के सेंनमुड़ा में स्थित अलेक्जेंडर पत्थर मिलने वाले 50 डिसमिल जमीन को आज से 25 वर्ष पूर्व खनिज विभाग ने 12 फीट उंचाई तक चारों ओर कांटेदार तारों से घेराबंदी करा दी थी । वर्तमान समय में उक्त स्थल पर बड़े-बड़े घांस-फुस अटे पड़े हैं । गौरतलब है कि जमीन मालिक सहदेव गोंड़ की 20 वर्ष पूर्व मौत हो चुकी है,उक्त कीमती जमीन उनकें चारों पुत्र प्यारेसिंग,बलीयारसिंग,प्यारीलाल, चिल्हरसिंग के नाम पर है,वहां चर्चा करने पर पता चला कि शासन द्वारा जमीन मालिकों को कोई मुुुुुआवजा नहीं दिया गया । जबकि उन्हें मुवाआजा मिलने का हक है । तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा देवभोग, मैनपुर के हीरा और अलेक्जेंडर खदान को दक्षिण अफ्रीका के नामी विदेशी कंपनी डीबियर्स को देने को लेकर उस समय भाजपाा हाय-तौबा मचाया था ।
इसी के चलते 22 नवम्बर 1996 को गरियाबंद तहसील मुख्यालय गांधी मैदान में विदेशी कंपनी डीबियर्स को ठेके में उत्खनन का कार्य दिये जाने को लेकर भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा,
पूर्व कृषि मंत्री चन्द्रशेखर साहू,विधायक गंगूराम बघेल, भाजपा नेता अशोक बजाज, डाॅ. दयाराम साहू,
श्याम बैस आदि भाजपा नेताओं ने रैली एवं महती आम सभा कर विरोध जताया था । अब जबकि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता में है और राज्य के अंतिम सीमा में बसने वाले देवभेाग ईलाके के रहवासियों को पिछड़ेपन से निजात दिलाते हुये क्या वर्तमान छत्तीसगढ़ सरकार अपार खनिज संपदा भरे पड़े पुरे क्षेत्र में प्रकृति प्रदत्त मौजूद संसाधनों का दोहन कर धनधान्य से परिणूर्ण बनाने तथा विकास रूपी रथ को आगे बढ़ाने का सकारात्मक रूख अख्तियार करेगी ।
कांग्रेस शासन को सत्तासीन हुए 2 वर्ष हो चुके हैं । किन्तु सरकार ने देवभोग इलाके को अब तक उपेक्षित ही रखा है । क्षेत्र में विकास कार्यो को गति देने कोई ठोस कदम नही उठाए गए । बल्कि सेनमुड़ा में स्थित अलेक्जेंडर खदान में अवैध उत्खनन का आरोप माह जनवरी सन् 2007 में विपक्षी दल कांग्रेस ने लगाया था । जिसके चलते विपक्ष के नेता शहीद स्व.महेन्द्र कर्मा ने इसकी जांच के लिए विपक्ष के उपनेता भूपेश बघेल के नेतृव में विधायकों की एक समिति बनाई थी समिति में विधायक मो. अकबर, राजकमल सिंघानिया,ओंकार शाह शामिल थे ।
विधायक दल वस्तु स्थिति का जायजा लेने जब सेंनमुड़ा गांव पहुंचा तो खदान में आस-पास भारी मात्रा में अवैध उत्खनन होने की जानकारी उन्होंने दी थी । जिसकी रिपोर्ट विपक्ष के नेता को सौंप दी गई इसके बाद सरकार ने खादान की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए इसका कोई अता-पता नही है ।
उस दौरान एैसा प्रतीत होता है कि भाजपा सरकार अलेक्जेंडर खदान के लिए गंभीर नही थे या फिर जान बुझकर आंखे मुंदे हुए थे ।
गौरतलब है कि बारिश के दिनों में देवभोग तेल नदी में बाढ़ आने का बेसब्री से तस्करों को इंतजार रहता है । चूंकि तेल नदी में बाढ़ आने के बाद रास्ते चोक हो जाते हैं तब उड़ीसा के तथाकथित तस्कर धरमगढ़ और ग्राम मोटेर के रास्ते से सीधे अलेक्जेण्डर खदान ग्राम सेनमुदा तक दो पहियों वाहनों से आसानी से पहुंचते हैं । भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक उडीसा के तस्कर गांव के ग्रामीणों से अवैध उत्खनन के लिए सीधे संपर्क करते हैं । सेंदमुडा खदान में 10-15 गांव के ग्रामीण खोदाई करते हैं । एक बार जब खोदाई शुरू हो जाती है तब पुलिस प्रशासन भी अवैध खोदाई को रोक नहीं पाता । सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर सेंदमुडा गांव के कोटवार खदान की देखरेख करते हैं। शासन ने बेशकीमती अलक्जेण्डर खदान को मात्र एक कोटवार के भरोसे छोड़ दिया है,
शासन-प्रशासन की मंशा समझ से परे है ।