बलौदाबाजार - बलौदाबाजार संयुक्त कार्यालय के आदिम जाती एवं आदिवासी विकास शाखा के अधिकारी नहीं मानते विधि द्वारा बनाये विधान को । भारत सरकार ने 2005 मे एक अधिनियम लाया जिसके सुचना के अधिकार अधिनियम 2005 के नाम से जाना जाता है इसके पीछे शासन का मंतव्य था की भारत देश के प्रत्येक नागरिक को वाह जानकारी देने जाने का अधिकार दिया जो विधानसभा लोकसभा एवं राज्यसभा मे मांगे गए जानकारी जोकि सदनों मो दिए जा सकते वे सभी जानकारी आम नागरिक को भि दिया जायेगा । यह अधिनियम शासन प्रशासन एवं जानता के मध्य विश्वास को बढ़ावा देने और लोगो को उनके देश मे उनके द्वारा दिए गए टेक्स की आय ब्यय की जानकारी ले सके सरकार लोगो से प्राप्त टेक्स को कहा खर्च कर रही जानता के विकास के लिए सरकार ने क्या किया शासन प्रशासन और जानता के मध्य पारदर्शिता बनाये रखने के लिए यह अधिनियम लाया गया है ।
एक माह से अधिक समय आवेदन किये बीत जाने के बाद भी जन सुचना अधिकारी द्वारा जानकारी नहीं दिया गया ।
14 फरवरी 2024 को आवेदक गोपी अजय ग्राम भिनोदा सरसींवा जिला सारंगढ़ बिलाईगढ़ द्वारा 2019 मे किये शिकायत की जाँच की कॉपी मांगने के लिए अपने अधिकार एवं विधि द्वारा बनाये गए विधान के तहत जन सुचना अधिकारी आदिम जाती एवं आदिवासी विकास विभाग बलौदाबाजार से सुचना पाने के लिए आवेदन रजिस्ट्री पोस्ट के माध्यम से बलौदाबाजार के संयुक्त कार्यालय मे भेजा था परन्तु जन सुचना अधिकारी ने अभी तक लगभग 2 माह हो गया जानकारी प्रदान नहीं किया है, लगता है आदिम जाती आदिवासी विकास विभाग विधि द्वारा बनाये कानूनों को नहीं मानता इसलिए जानकारी देना जरुरी नहीं समझा ।
जन सुचना अधिकारी द्वारा सुचना नहीं देने पर आवेदक एवं शासन को होती है आर्थिक क्षति
जन सुचना अधिकारी द्वारा जानकारी नहीं मिलने पर प्रथम अपील और सेकंड अपील का नियम है परन्तु यदि व्यक्ति प्रथम अपील और सेकंड अपील मे जायेगा तो उसमे फैसला आने एवं सुचना मिलते मिलते साल निकल जाता है । इन सब प्रक्रिया के बिच आवेदक एवं शासन को बहुत बड़ी आर्थिक क्षति होती है । शासन ऐसे अधिकारियो के खिलाफ कोई बड़ा कदम क्यों नहीं उठाती इनके विरुद्ध कड़ा कानून न होने के वजह से इनमे विधान के प्रति अपना दायित्व पुराना करने मे कामचोरी करते और इसी कदम मे यदि आगे बढ़ते हुए कह दिया जाये की अधिकारी कामचोर है तो प्रशासन को मिर्ची लग जाएगी ।