दंतेवाड़ा-बीते पखवाड़े रेत माफियाओं के खिलाफ की गई कार्यवाही हाथी के दांत साबित हो रहे हैं. सरकारें कोई भी हो इन माफियाओं पर रोक नहीं हो पाती. कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में तस्कर कांग्रेस के जनप्रतिनिधियों के संरक्षण में बेखौफ रेत का खनन कर रहे थे तो अब बारी भाजपा की है. भाजपा नेता भी इस हमाम में शामिल हैं. जिस प्रकार से मतदाताओं ने भरोसा करके भाजपा को जीत दिलाई जनता अब खुद ही हार मान बैठी है. प्रधानमंत्री आवास निर्माण में पंचायतकर्मियों को हलाकान करने वाले मौजूदा सरकार के प्रतिनिधी शेष मामले में "मैं न ही माखन खायो "गा रहे हैं. रेत तस्करों की किसी भी सरकार में बल्ले-बल्ले होती है. कुछ दिनों पूर्व हुई कार्यवाही केवल इन माफियाओं को दस्तावेज ठीक करने का मोहलत ही देना साबित हो रहा है. वर्तमान में ये तस्कर जिन स्थानों में रेत का भंडारण कर रखें हैं उनके बैक डेट में पीटपास, पंचनामा, भंडारण की मात्रा, आदि दस्तावेज ठीक करने में लगे हैं.बचेली-किरंदुल के रेत तस्कर इन मामलों में पारंगत माने जाते हैं.वर्तमान सरकार के विधायक के इर्द-गिर्द इन्हीं तत्वों की पैठ है लिहाजा अंतर कुछ भी नहीं है. आईना वहीं है चेहरे बदल गए हैं.एक सरकार थी जो पंद्रह साल के सूखे के बाद आई और ताबड़तोड़ बंदरबाट मचाया अब पांच साल बाद भाजपा की सरकार वापस लौटी और फिर वे दिन लौटकर आये.कुलमिलाकर यह कहना वाजिब होगा कि व्यवस्था में बदलाव की उम्मीद न रख केवल अवसर का लाभ उठाती पार्टियां हम पंछी एक डाल का तराना गुनगुनाते हैं और जनता को ठीक चुनाव में अपनी नाकामी का ठीकरा दूसरे के सर फोड़ फिर से जनता को भ्रम में डालते हैं।