हेमंत कुमार पटेल
आज ‘शाकम्भरी जयंती’ (Shakambhari Jayanti) है। पौष पूर्णिमा के दिन हर साल ‘शाकम्भरी जयंती’ का पावन पर्व मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। देश के अन्य हिस्सौ में भी ‘शाकम्भरी जयंती’मनाई जाती है। हिन्दू धर्म में ‘शाकम्भरी जयंती’ (Shakambhari Jayanti) का बड़ा ही महत्व है।
पंचांग के अनुसार, ‘शाकम्भरी जयंती’ अष्टमी के दिन शुरू होती है और पौष महीने की पूर्णिमा के दिन समाप्त होती है। इस पर्व को आठ दिनों तक मनाया जाता है और शाकम्भरी पूर्णिमा, ‘शाकम्भरी नवरात्रि’ का समापन या अंतिम दिन भी होता है। साल 2022 ‘शाकम्भरी जयंती’ 10 जनवरी से शुरू हो रहा है, जो पौष पूर्णिमा 17 जनवरी को समाप्त होगा। आइए जानें मां शाकंभरी’पूजा विधि,और इसकी महिमा-
शाकम्भरी माता की महिमा अपरम्पार है। माता अन्न, फल, कंद-मूल, वनस्पति की देवी है। ‘माता शाकम्भरी’भी माँ दुर्गा का ही एक रूप है। इस जगत के प्राणियों के भोजन और भरण पोषण का भार माता शाकम्भरी ही उठाती है हम सब शाकम्भरी पूर्णिमा के दिन माता शाकम्भरी की जयंती मनाते हैं और उनकी आराधना और स्तुति करतें है शाकम्भरी जयंती उत्सव मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक में मनाई जाती है। देश के अन्य भागों में भी शाकम्भरी जयंती मनाई जाती है।
पूजा-विधि
पौष मास की अष्टमी तिथि को प्रातः उठकर स्नान आदि कर लें। सर्वप्रथम गणेशजी की पूजा करें, फिर माता शाकम्भरी का ध्यान करें। लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर मां की प्रतिमा या तस्वीर रखें व मां के चारों तरफ ताजे फल और मौसमी सब्जियां रखें। गंगाजल का छिड़काव कर माँ की पूजा करें, इनके प्रसाद में हलवा-पूरी, फल, शाक, सब्जी, मिश्री, मेवे का भोग लगता है।मां को पवित्र भोजन का प्रसाद चढ़ाकर इनकी आरती करें
शास्त्रों के अनुसार, जो भी श्रद्धालु निश्छल मन से ‘मां शाकम्भरी’ की स्तुति, ध्यान, जप, पूजा-अर्चना करता है, वह शीघ्र ही अन्न, पान एवं अमृतरूप अक्षय फल को प्राप्त करता है। भक्ति-भाव से माँ की उपासना करने वाले के सभी मनोकामनाएं पूरी होते हैं।