भिलाई/दुर्ग - छत्तीसगढ़ दुर्ग जिले के एक छोटा सा कस्बा चरौदा के एक ग़रीब युवक 23 वर्षीय के भरत कुमार ने सफलता के उस मुकाम को हासिल किया है जो आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत है।
आईये जानते हैं भरत कुमार के संघर्ष की कहानी
छत्तीसगढ़ राज्य की इस्पात नगरी भिलाई के पास चरौदा के निवासी होनहार युवक भरत कुमार के पिता बैंक मे सुरक्षा गार्ड की नौकरी करते हैं और अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देना चाहते हैं। भरत कुमार ने पिता के सपनों को साकार करने के लिए लगन और मेहनत, दृढ़ संकल्प के दम पर इसरो में वैज्ञानिक बनने का गौरव हासिल किया है। आर्थिक तंगी से गुजरते हुए के भरत कुमार ने पढ़ाई जारी रखा। भरत कुमार की माता सबेरे इडली और चाय बेचने का काम ठेला टपरी लगाकर करती थी।कोयले की काली गर्द के बीच भरत अपनी मां के साथ चाय बेचकर,कप प्लेट धोकर परिवार की जीविका और अपनी पढ़ाई के लिए मेहनत कर रहा था। बचपन से होशियार भरत की शिक्षा केन्द्रीय विद्यालय चरौदा में होने लगी।भरत कुमार जब नौंवी कक्षा का विद्यार्थी था उस वक्त स्कूल फीस नहीं दे पाने के कारण टी सी कटवाने की नौबत आ गई थी, परंतु भरत की प्रतिभा को देखते हुए स्कूल प्रबंधन ने फीस माफ कर दिया और यहां तक की शिक्षकों ने मिलकर कापी किताब का खर्च भी उठाया। भरत ने 12 वीं की परीक्षा मेरिट के साथ पास की और आईआईटी धनबाद झारखंड के लिए चयन हो गया परंतु आर्थिक समस्या ने पीछा नहीं छोड़ा। कहा जाता है कि मेहनत का फल मीठा होता है और भगवान उसी का साथ देते हैं जो सच्चे मन से मेहनत करते हैं। पढ़ाई के वक्त फिर आर्थिक समस्या आड़े आई तो समाज सेवी अरूण बाग रायपुर और जिन्दल ग्रुप ने सहयोग किया। भरत ने खूब मेहनत कर मेधावी छात्र होने का परिचय दिया और 98% के साथ आई आई टी धनबाद में गोल्ड मैडल प्राप्त कर अपने माता-पिता का नाम रोशन किया।
बता दें कि जब भरत इंजीनियरिंग के 7 वें सेमेस्टर में था तब इसरो ने अकेले भरत कुमार का प्लेसमेंट में चयन किया और आज चन्द्रयान 3 मिशन का हिस्सा बना। मात्र 23 वर्ष का यह युवा चन्द्रयान 3 के टीम में सदस्य बनकर अपना योगदान दिया। गुदड़ी के लाल ने छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश को गौरवान्वित किया है और जहां चाह है वहां राह है को साबित कर दिखाया। आर्थिक समस्या जूझ रहे प्रतिभाशाली युवाओं के लिये के भरत कुमार प्रेरणास्रोत हैं।