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Thursday, June 4, 2020

राज्य सरकार को चाहिए कि निजी स्कूलों में कार्यरत प्राचार्य तथा शिक्षकों से लेकर क्लर्क चपरासी तक के जीवन यापन के व्यवस्था की भी जवाबदारी उठानी चाहिए : प्रीतम सिन्हा

गरियाबंद। राज्य सरकार जिस तरह से निजी स्कूलों को शुल्क न लेने से लेकर हर तरह की ऐसी हिदायतें दे रही है ,जिससे उनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा । यदि सरकार की यही मंशा है कि निजी संस्थाएं दम तोड़ दें और उनका अहम योगदान शिक्षा के क्षेत्र मवन एक इतिहास बनकर रह जाए, तो इन स्कूलों में कार्यरत प्राचार्य,तथा शिक्षकों से लेकर क्लर्क चपरासी तक के जीवनयापन के व्यवस्था की जवाबदारी भी उठानी चाहिए । अब सरकार खुद अंग्रेजी माध्यम की स्कूलों के संचालन में कदम बढ़ा चुकी है, तब क्यों न अंग्रेजी स्कूलों में अध्यापन कार्य कर रहे शिक्षकों को इन्हीं सरकारी स्कूलों में नाराज कर दिया जाए । यदि यह सम्भव नही है तो सभी निजी स्कूलों को कम से कम एक वर्ष तक 75 प्रतिशत तक (वेतन के अनुसार) अनुदान देकर सरकार को जनहित में बड़ा फैसला लेना चाहिए । वैसे भी सरकार का समय- समय पर यह बयान आता रहा है कि समाज के किसी भी वर्ग को जीवनयापन की कठिनायी नही आने दी जाएगी । पूरे प्रदेश में लंबे समय से निजी संस्थाओं ने शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा योगदान किया है । जहाँ तक बात करें अंग्रेजी शिक्षा की तो इसकी नींव ही निजी संस्थाओं द्वारा रखी गयी है । संकट के दिनों में लाखों शिक्षकों सहित अन्य कर्मचारियों को अनदेखा जर देना किसी भी हालत में उचित नही कहा जा सकता है। सरकार को भी यह ज्ञात है कि अनेक स्कूलों ने अपने स्टाफ को वेतन देना या तो बन्द कर दिया है या फिर महज आधा वेतन ही दिया है । साथ ही पिछले तीन- चार महीनों का भुगतान भी शुल्क न आने से अटका हुआ है । ऐसे में उन परिवारों की स्थिति और ज्यादा बदतर हो रही है जिन परिवारों में पति-पत्नी दोनों ही निजी शैक्षणिक संस्थाओं में सेवाओं दे रहे हैं।

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