भिनोदा (सरसींवा) - छत्तीसगढ़ के बोर बासी ला लेके बनाय गिस एक शानदार कविता पढ़ाव का कथे कवि हर........
गजब मिठाथे रे संगी छत्तीसगढ़ के बासी,
यही हमर बर तीरथ गंगा, यही हमार बर कांसी,
गजब मिठाथे रे............
यही हमर बर पूड़ी समोसा यही हमर बर रसगुल्ला अउ खोवा ए
यही हमर बर बर्फी पेड़, डोसा अउ सेव दलिया ए,
हकन के खले संगी, फेर दिन उपासी ए
गजब मिठाथे रे............
कतको लगे जाड़ रे संगी चाहे बरसात पानी,
साग के जरूरत नि हे सँग मे नून मिर्चा अउ चटनी
रोटी पिठा नि भये रे संगी चाहे बासी त्यासी,
गजब मिठाथे रे............
खेत खर हर रण भूमि ए, दीदी दाई बर पुनर्वासी,
गजब मिठाथे रे............
करिया हड़िया के बासी रे संगी, खा ले आमा के अथान,
एकर महिमा भारी रे संगी, कतका करा मै बखान,
दिन भर तन हर ताज़ा रही,खोखी आवय न खासी,
गजब मिठाथे रे............
यही हमर बर तीरथ गंगा यही हमर बर कांसी,
गजब मिठाथे रे संगी छत्तीसगढ़ के बासी।
कवि काजल कुमार सोनवानी... भिनोदा बिलाईगढ़ बलौदाबाजार छ्ग
ए एक छत्तीसगढ़ के खास खाना ल लेके कविता बनाय गे हे जेला अभी सरकार हर भी तेव्हार के रूप मे मानइस और शासन प्रशासन और पूरा प्रदेश के मन अपन कार्य स्थल और घर मे खाईन बोर बासी तइहा जमाना ले चलत आत हे पहले जमाना मे हमर सब के पुरखा मन यही ला खाय और अपन काम करें ल जय काम करें जय वहा भी खाय बर बोर बारी लेके जय कहे एकर ले भारी ताकत मिलथे और चटनी मे खा डरे और दिन बर तंदुरुस्त रहे । बोर बासी के गुन ल हमर कवि श्री काजल कुमार सोनवानी द्वारा बहुत ही शानदार तरीका से कविता के रूप मे बताय गिस ।
गोपी अजय विशेष संवादाता रिपोर्टर क्रांति